سیاوش قمیشی(صدای خش خش برگای خزونی توی گوشم)
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F#7 G Em |
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F# |
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صدای خش خش برگای خزونی توی
گوشم |
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ناله می کرد |
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G Em |
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F# |
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آسمون بغضشو تو پرده ابرای سیاهش |
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پاره می کرد |
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Em |
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G |
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رعد و برق نگاه شهرو با صداش |
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خواب زده می کرد |
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Em G |
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F# (F#7) |
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زمین از این همه سنگینی بار
به روی شونش |
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گله می کرد |
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A |
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G A |
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همچنان پای پیاده |
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فارغ از صدای خشم آسمونی |
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Bm A |
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جاده های بی کسیم رو |
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گم می کردم آروم آروم |
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G |
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F#7 |
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تن غربت روی شستم |
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زیر قطره های بارون |
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Bm A |
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G F#7 |
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من بیاد عطر بارون زده گلای
پونه |
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می کشیدم پای خستمو تو جاده
به هوای بوی خونه |
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Bm A |
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G F#7 |
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وقتی که
صدای خونه منو تا آخر جاده میکشونه |
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این سراب توی جاده که چشما
مو میپوشونه |
= |
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2 |
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